Hindi divas 2016

Cette page permet de vous entraîner aux dictées en hindi. Écoutez chacune d’entre elles, écrivez-la sur papier, puis vérifiez votre texte en cliquant sur le bouton qui suit chaque audio.

Dictée n°1

परिश्रम का फल

एक किसान था। उसके चार बेटे थे। किसान मेहनती था, किंतु उसके बेटे बड़े आलसी थे। वे उसके किसी काम में हाथ नहीं बँटाते थे।

एक बार किसान बीमार पड़ गया। दिन-पर-दिन उसकी सेहत बिगड़ती जा रही थी। फसल बोने का समय आ पहुँचा। उसने मन-ही-मन सोचा कि यदि उसके बेटे काम नहीं करेंगे तो खाएंगे क्या? उनका भविष्य तबाह हो जाएगा।

किसान ने बेटों को बुलाकर कहा — “पुत्रो! हमारे खेत में खज़ाना दबा हुआ है। यदि चाहो तो वह तुम्हारा हो सकता है। इसके लिए तुम्हें खेत की खुदाई करनी पड़ेगी।” किसान के बेटों ने फावड़ों से सारे खेत की खुदाई कर दी, पर कुछ हाथ नहीं लगा। वे निराश होकर लौट आए।

किसान ने खेतों में बीज डलवा दिए। जमकर वर्षा हुई व कुछ ही महीनों में, खेतों में फसल झूमने लगी।

किसान ने बेटों को बुलाकर कहा — “खेत का खज़ाना तुम्हारी आँखों के सामने है। यह तुम्हारी ही मेहनत का फल है। यदि इसे न सँभाला तो सारा परिश्रम व्यर्थ हो जाएगा” किसान के बेटों को समझ आ गया कि मेहनत ही वह कुंजी है, जिससे सफलता के द्वार पर लगा ताला खुल सकता है। वे सब आलस त्यागकर परिश्रम करने लगे।

शिक्षा — परिश्रम से सब कुछ पाया जा सकता है।

Dictée n°2

बगुले व कछुआ

बहुत समय पहले की बात है। एक तालाब में एक बातूनी कछुआ और दो बगुले रहते थे। उनमें परस्पर गहरी मित्रता थी। एक बार भयंकर अकाल पड़ा। वर्षा न होने से सभी तालाब व नाले सूखने लगे। सभी जानवर किसी ऐसे स्थान की खोज में जा रहे थे, जहाँ पर्याप्त जल हो।

जल में रहने वाले पक्षी भी नए ठिकाने की तलाश में निकल पड़े। बगुलों ने भी सोचा कि यहीं रहकर प्राण त्यागने की बजाय किसी दूसरे स्थान पर जाना चाहिए। उनके मित्र कछुए ने विनती की — “मित्रो! मुझे भी अपने साथ ले चलो वरना मैं इस सूखते तालाब में ही मारा जाऊँगा।” बगुलों को भला क्या आपत्ति होती, परंतु कछुए को साथ ले जाने का उपाय क्या था? कछुआ तो उड़ नहीं सकता। कछुए ने उपाय सुझाया — “मैं एक लकड़ी की डंडी मुँह से पकड़ लूँगा, तुम दोनों, दोनों किनारों से डंडी थाम लेना। इस तरह मैं भी उड़कर सुरक्षित स्थान तक पहुँच जाऊँगा।” बगुलों ने मित्र कछुए को सावधान किया कि वह यात्रा के दौरान बिलकुल न बोले वरना मारा जाएगा।

उनकी यात्रा शुरू हो गई। मैदान में चलते लोगों ने देखा कि दो बगुले एक कछुए को उड़ाए ले जा रहे थे। वे सब हैरान होकर बातें बनाने लगे। यह देखकर कछुआ सब कुछ भूल गया। उसने जैसे ही बोलने के लिए मुँह खोला, झट से ज़मीन पर आ गिरा और मारा गया। उसे अपने उतावलेपन का दंड मिल गया था।

शिक्षा — हमें कोई भी कार्य उतावलेपन में आकर नहीं करना चाहिए।

Dictée n°3

नकलची बंदर

एक था रामू। वह प्रतिदिन टोपियाँ बेचने शहर जाता था। टोपियाँ बेचने से जो भी धन मिलता उसी से उसकी गुजर-बसर होती थी।

एक दिन दोपहर के समय तेज धूप थी। रामू थका हुआ था। वह पेड़ क नीचे लेटकर आराम करने लगा। देखते-ही-देखते उसकी आँख लग गई।

उसी पेड़ पर कुछ बंदर रहते थे। बंदरों ने टोपियों से भरा थैला देखा तो उन्हें शैतानी सूझी। उन्होंने देखा कि रामू ने भी सिर पर वैसी ही टोपी पहनी हुई थी। सब बंदरों ने एक-एक टोपी पहन ली व पेड़ पर जा बैठे।

रामू की आँख खुली तो थैला खाली देखकर हक्का-बक्का रह गया। पेड़ पर नजर पड़ी तो सारा माजरा समझ आ गया।

उसने परेशान होने की बजाय मन-ही-मन उपाय सोचा और उसे एक उपाय सूझ गया। वह जानता था कि केवल एक ही तरीके से टोपियाँ वापस मिल सकती थीं।

उसने अपनी टोपी सिर से उतारी व ज़मीन पर पटक दी। पेड़ पर बैठे बंदरों ने भी रामू की देखा-देखी अपनी टोपियाँ ज़मीन पर फेंक दीं। रामू ने झट से सारी टोपियाँ थैले में भरीं और वहाँ से चल पड़ा।

शिक्षा — बुद्धि में बड़ा बल है।

Dictée n°4

शेर और चूहा

दोपहर का समय था। एक शेर बड़े आराम से एक वृक्ष की शीतल छाया में सो रहा था। उस वृक्ष की जड़ में एक चूहे का बिल था। अपने बिल के पास शेर को सोया देखकर चूहा बिल से बाहर आया और शेर के ऊपर चढ़कर उछल-कूद मचाने लगा।

चूहे की उछल-कूद से शेर नींद से जाग गया। उसे यह देखकर बहुत क्रोध आया कि एक अदना-सा चूहा उसके ऊपर चढ़कर उछल-कूद कर रहा था। शेर ज़ोर से दहाड़ा। उसकी दहाड़ से डरकर चूहा उसकी तरफ देखने लगा। इससे पहले कि चूहा भाग पाता शेर ने तेज़ी से झपट्टा मारकर चूहे को अपने पंजे में पकड़ लिया।

जैसे ही शेर चूहे को मारने लगा कि चूहे ने हाथ जोड़कर कहा — “महाराज! कृपया आप मुझे न मारें। मेरी धृष्टता क्षमा करें। दया करके मुझे प्राण-दान दे दो। विपत्ति के समय मैं भी आपकी सहायता करूंगा और आपके प्राणों की रक्षा करूंगा।”

चूहे की बात पर शेर ज़ोर से हँस पड़ा। उसने चूहे से कहा — “मुझे तुम्हारी बात अच्छी लगी, परंतु तुम तो एक नन्हे-से चूहे हो, तुम मेरी क्या सहायता करोगे?”

इस पर चूहे ने कहा — “महाराज! आप यक़ीन मानो मैं सच कह रहा हूँ।” शेर ने मन-ही-मन सोचा — इस छोटे से चूहे को खाकर या मारकर मुझे क्या मिलेगा। यह सोचकर शेर ने चूहे को अपने पंजे से आज़ाद कर दिया। चूहा शेर का धन्यवाद कर अपने बिल में चला गया।

कुछ दिन बाद जंगल में एक शिकारी आया। उसने शेर को पकड़ने के लिए जंगल में एक स्थान पर जाल लगाया। शेर जाल में फँस गया। वह ज़ोर-ज़ोर से दहाड़ने लगा। उसकी दहाड़ सुनकर वह चूहा उसके पास आया। शेर को जाल में फँसा देख उसने शेर से कहा — “घबराना नहीं महाराज! मैं अभी अपने साथी चूहों को लेकर आता हूँ और इस जाल को काटकर आपको आज़ाद करता हूँ।” इतना कह चूहा अपने साथी चूहों को बुलाने के लिए चल पड़ा। कुछ समय बाद चूहा अपने साथी चूहों के साथ भागा आया। सभी चूहों ने मिलकर कुछ ही देर में जाल काट दिया। जाल के कटते ही शेर अब आज़ाद था। उसने खुशी से दहाड़ते हुए चूहे का धन्यवाद किया। इसके बाद चूहा और शेर गहरे दोस्त बन गए।

शिक्षा- समय पड़ने पर छोटा व्यक्ति भी महान कार्य कर सकता है।

Dictée n°5

खरगोश और कछुआ

एक घने वन में एक खरगोश रहता था। उसे अपनी तेज़ चाल पर बड़ा घमंड था। एक दिन उसे तालाब पर जाते समय एक कछुआ मिला। कछुआ बहुत धीरे-धीरे तालाब की ओर जा रहा था। खरगोश ने हँसते हुए कहा — “चलो! तालाब तक दौड़ लगाते हैं, जो पहले पहुंचेगा, उसकी जीत होगी।”

कछुए ने खरगोश की बात मान ली। उन दोनों में दौड़ शुरू हुई। खरगोश तेज़ी से भागा। वह कछुए से काफ़ी आगे निकल आया था। उसने सोचा कि क्यों न वृक्ष के नीचे थोड़ा आराम कर लिया जाए।

उधर कछुआ अपनी धीमी गति से लगातार चल रहा था। जब वह वृक्ष के पास पहुँचा तो देखा कि खरगोश तो सो रहा था1। कछुआ लगातार चलते हुए तालाब पर पहले पहुँच गया। जब खरगोश की आँख खुली तो वह तेज़ी से तालाब की ओर भागा।

उसने देखा कि वहाँ तो उससे पहले ही कछुआ पहुँच चुका था। खरगोश अपनी हार पर बहुत लज्जित हुआ। उसने दुखी हृदय से अपनी हार स्वीकार कर ली।

शिक्षा- हमें अभिमान नहीं करना चाहिए।

1   Erreur dans l’audio : है

Dictée n°6

लालची किसान

किसी गाँव में एक गरीब किसान रहता था। उसका नाम अलगू था। दूसरों के खेतों में मज़दूरी कर वह किसी प्रकार दो वक्त का भोजन जुटा पाता था। इसी तरह गरीबी में उसके दिन बीत रहे थे।

एक दिन उसके द्वार पर एक साधु आया। अपने द्वार पर एक साधु को आया देख किसान ने हाथ जोड़कर उन्हें प्रणाम किया। साधु भूखा व प्यासा लग रहा था। किसान ने साधु से कहा — “महाराज! मुझ गरीब की कुटिया में पधारिए और जो रूखा-सूखा है, उसे खाकर अपनी भूख-प्यास शांत कर कुछ देर आराम करके फिर जाना।” किसान के मधुर वचन सुन साधु ने प्रसन्नतापूर्वक कहा — “जैसी तुम्हारी इच्छा बालक। तुम्हारा कल्याण हो।”

किसान ने चटाई बिछाकर साधु को बैठने के लिए कहा। फिर साधु को एक पत्तल पर दो रोटियाँ और चटनी परोस दी। एक ग्लास जल का रख दिया। फिर बोला — “महाराज मुझ गरीब की कुटिया में यही रूखा-सूखा है। कृपया खाना शुरू कीजिए।” किसान के आदर-सत्कार से प्रसन्न होते हुए साधु ने खुशी-खुशी वह दो रोटियाँ चटनी से लगाकर खा लीं। फिर वहीं कुछ देर आराम कर किसान से कहा — “अच्छा बालक, अब हम प्रस्थान करेंगे। हमें अभी बहुत दूर जाना है। तुम्हारी और कुटिया की हालत देखकर हमने जान लिया है कि तुम बहुत कष्ट में हो, लेकिन अब चिंता न करो। मैं तुम्हारे निस्वार्थ आदर-सत्कार से प्रसन्न होकर तुम्हें यह सोने का अंडा देने वाली मुर्गी दे रहा हूँ। यह तुम्हें रोज सुबह सोने का एक अंडा देगी। इससे तुम्हारी दरिद्रता दूर हो जाएगी।” किसान ने खुश होते हुए वह सोने का अंडा देने वाली मुर्गी ले ली। तदुपरांत श्रद्धा के साथ साधु के चरण स्पर्श किए। साधु किसान को आशीर्वाद देकर चला गया।

साधु के जाते ही किसान बेचैनी से सुबह होने का इंतज़ार करने लगा। उस रात वह ठीक से सो भी नहीं सका। सुबह होने पर किसान ने देखा कि साधु की बात सच निकली। उस मुर्गी ने सचमुच सोने का एक अंडा दिया था।

अब तो किसान की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसे रोज़ सुबह सोने का अंडा मिलने लगा। कुछ ही दिनों में सोने का अंडा बेचकर किसान गाँव का सबसे धनी आदमी बन गया। उसने झोंपड़ी के स्थान पर एक बड़ा और सुंदर मकान बनवा लिया था। गरीबी का अब नाम-निशान भी नहीं था।

वह अपने मकान और ठाट-बाट को देखकर खुश होता रहता था, लेकिन धन आ जाने के बाद अब उसका स्वभाव पहले जैसा नहीं था। वह बदल गया था। उसे अब गरीबी और गरीबों से नफरत थी। वह अब किसी गरीब की मदद नहीं करता था। किसी साधु, संन्यासी का आदर नहीं करता था।

एक दिन उसने सोचा — क्यों न मैं कल सुबह मुर्गी का पेट फाड़कर एक बार में ही सारे अंडे निकाल लूँ, ये रोज़ एक अंडे वाला झंझट ही खत्म हो जाएगा। अगले दिन रोज़ की तरह मुर्गी ने एक अंडा दिया। किसान ने सोने का अंडा उठाकर एक तरफ रख दिया।

फिर उसने अपनी योजनानुसार मुर्गी को पकड़कर चाकू से उसका पेट फाड़ डाला। पर यह क्या! मुर्गी के पेट में तो सोने का एक भी अंडा नहीं था।

Transcription des dictées