Formes verbales
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Exercice
अकबर हिंदू धर्म की बातें सुनने में बड़ी रुचि रखते थे और बीरबल भी उन्हें अनेक धर्मकथाएं सुनाया करता था। |
एक दिन बीरबल ने उन्हें इंद्र और स्वर्ग की कथा सुनाई। स्वर्ग की कथा सुनकर अकबर बोले, “बीरबल! यह सब तो कोरी गप्प है। स्वर्ग जैसा कुछ भी नहीं है।” |
बीरबल बोला, “जहांपनाह। ऐसी बात नहीं है, वास्तव में स्वर्ग है।” |
“यदि सचमुच में स्वर्ग है तो तुम हम सबको इंद्र की सवारी के दर्शन कराओ।” अकबर बोले। |
“ठीक है, एक-न-एक दिन मैं आपको इंद्र की सवारी के दर्शन अवश्य कराऊंगा।” बीरबल ने कहा। |
अब तो अकबर बीरबल के पीछे पड़ गए। उन्हें जब भी याद आता, बीरबल को इंद्र की सवारी वाली बात याद दिलाते। |
एक बार अकबर ने नदी पर बांध का निर्माण कार्य प्रारंभ करवाया। उस काम की जिम्मेदारी बीरबल के ऊपर छोड़ दी। |
बीरबल ने बांध के पास ही एक दीवार बनवाकर उसमें छोटे-छोटे झरोखे बनवाए और उन पर सुंदर नक्काशी करवा दी। |
पूर्णिमा की रात को अकबर और दूसरे दरबारियों को लेकर बीरबल नदी पर आया और सभी को झरोखों में बैठाकर बोला, “अभी आप सबको यहां से इंद्र की सवारी आती हुई दिखाई देगी।” |
नदी का दृश्य बहुत ही लुभावना था। |
ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी। फलस्वरूप नदी के जल में लहरें उठ रही थीं। चारों ओर चांदनी छिटकी हुई थी। नदी के जल में चंद्रमा का प्रतिबिंब पड़ रहा था। उस समय वह स्थल स्वर्ग जैसा मनोरम प्रतीत हो रहा था। |
एकाएक बीरबल जोर-जोर से बोलने लगा, “जहांपनाह! वह देखो, इंद्र की सवारी आ रही है। ऐरावत हाथी पर बैठे इंद्र कितने अच्छे लग रहे हैं। अरे, इनके आभूषण तो देखो! चेहरे पर कितना नूर है। |
अकबर और दूसरे दरबारी आँखें फाड़-फाड़कर देखने लगे। लेकिन बीरबल जैसा बोल रहा था, वैसा कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था। |
बीरबल फिर बोला, “जहांपनाह! देखिए, अप्सराएं भी आ रही हैं। मेनका, रंभा, उर्वशी। अहा… ये सब कितनी सुंदर हैं। अरे, इनकी चाल कितनी मोहक है! लेकिन यह सब पुण्यवानों को ही दिखाई देगा… पापियों को नहीं। जिस व्यक्ति ने जीवन में चोरी की होगी, दूसरों का दिल दुखाया होगा, जो पीठ पीछे अपने मित्रों व साथियों की निंदा करते रहे हैं, जिनका धर्म भ्रष्ट हो चुका है, ऐसे लोग इस सवारी को नहीं देख पाएंगे। क्यों साथियो! आपको तो इंद्र की सवारी दिखाई दे रही है न?” |
भला कौन इनकार करता? |
स्वयं को सच्चा और सत्यवादी सिद्ध करने के लिए सभी अपना-अपना सिर हिलाने लगे। लेकिन वास्तव में किसी को कुछ नहीं दिखाई दे रहा था। |
अंत में बीरबल बोला, “अब इंद्र की सवारी वापस जा रही है।” |
इसके बाद सब दरबारी अपने-अपने घर चले गए। |
अकबर और बीरबल भी अपने-अपने घर लौट गए। |
रास्ते में अकबर ने बीरबल से पूछा, “बीरबल! क्या तुमने वास्तव में ही इंद्र की सवारी देखी थी?” |
बीरबल बोला, “मैं तो पापी हूं मुझे इंद्र की सवारी कहां दिखाई देती? मैं तो नदी के तट के प्राकृतिक सौंदर्य का रस ले रहा था। फिर आपने बांध का भी तो निर्माण करवाया है। गरीब सुखी हो जाएंगे और गरीबों के सुख में ही सच्चा स्वर्ग छिपा है।” |
बीरबल का जवाब सुनकर निरुत्तर हो गए अकबर। |
अकबर हिंदू धर्म की बातें सुनने में बड़ी रुचि रखते थे और बीरबल भी उन्हें अनेक धर्मकथाएं सुनाया करता था। |
एक दिन बीरबल ने उन्हें इंद्र और स्वर्ग की कथा सुनाई। स्वर्ग की कथा सुनकर अकबर बोले, “बीरबल! यह सब तो कोरी गप्प है। स्वर्ग जैसा कुछ भी नहीं है।” |
बीरबल बोला, “जहांपनाह। ऐसी बात नहीं है, वास्तव में स्वर्ग है।” |
“यदि सचमुच में स्वर्ग है तो तुम हम सबको इंद्र की सवारी के दर्शन कराओ।” अकबर बोले। |
“ठीक है, एक-न-एक दिन मैं आपको इंद्र की सवारी के दर्शन अवश्य कराऊंगा।” बीरबल ने कहा। |
अब तो अकबर बीरबल के पीछे पड़ गए। उन्हें जब भी याद आता, बीरबल को इंद्र की सवारी वाली बात याद दिलाते। |
एक बार अकबर ने नदी पर बांध का निर्माण कार्य प्रारंभ करवाया। उस काम की जिम्मेदारी बीरबल के ऊपर छोड़ दी। |
बीरबल ने बांध के पास ही एक दीवार बनवाकर उसमें छोटे-छोटे झरोखे बनवाए और उन पर सुंदर नक्काशी करवा दी। |
पूर्णिमा की रात को अकबर और दूसरे दरबारियों को लेकर बीरबल नदी पर आया और सभी को झरोखों में बैठाकर बोला, “अभी आप सबको यहां से इंद्र की सवारी आती हुई दिखाई देगी।” |
नदी का दृश्य बहुत ही लुभावना था। |
ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी। फलस्वरूप नदी के जल में लहरें उठ रही थीं। चारों ओर चांदनी छिटकी हुई थी। नदी के जल में चंद्रमा का प्रतिबिंब पड़ रहा था। उस समय वह स्थल स्वर्ग जैसा मनोरम प्रतीत हो रहा था। |
एकाएक बीरबल जोर-जोर से बोलने लगा, “जहांपनाह! वह देखो, इंद्र की सवारी आ रही है। ऐरावत हाथी पर बैठे इंद्र कितने अच्छे लग रहे हैं। अरे, इनके आभूषण तो देखो! चेहरे पर कितना नूर है। |
अकबर और दूसरे दरबारी आँखें फाड़-फाड़कर देखने लगे। लेकिन बीरबल जैसा बोल रहा था, वैसा कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था। |
बीरबल फिर बोला, “जहांपनाह! देखिए, अप्सराएं भी आ रही हैं। मेनका, रंभा, उर्वशी। अहा… ये सब कितनी सुंदर हैं। अरे, इनकी चाल कितनी मोहक है! लेकिन यह सब पुण्यवानों को ही दिखाई देगा… पापियों को नहीं। जिस व्यक्ति ने जीवन में चोरी की होगी, दूसरों का दिल दुखाया होगा, जो पीठ पीछे अपने मित्रों व साथियों की निंदा करते रहे हैं, जिनका धर्म भ्रष्ट हो चुका है, ऐसे लोग इस सवारी को नहीं देख पाएंगे। क्यों साथियो! आपको तो इंद्र की सवारी दिखाई दे रही है न?” |
भला कौन इनकार करता? |
स्वयं को सच्चा और सत्यवादी सिद्ध करने के लिए सभी अपना-अपना सिर हिलाने लगे। लेकिन वास्तव में किसी को कुछ नहीं दिखाई दे रहा था। |
अंत में बीरबल बोला, “अब इंद्र की सवारी वापस जा रही है।” |
इसके बाद सब दरबारी अपने-अपने घर चले गए। |
अकबर और बीरबल भी अपने-अपने घर लौट गए। |
रास्ते में अकबर ने बीरबल से पूछा, “बीरबल! क्या तुमने वास्तव में ही इंद्र की सवारी देखी थी?” |
बीरबल बोला, “मैं तो पापी हूं मुझे इंद्र की सवारी कहां दिखाई देती? मैं तो नदी के तट के प्राकृतिक सौंदर्य का रस ले रहा था। फिर आपने बांध का भी तो निर्माण करवाया है। गरीब सुखी हो जाएंगे और गरीबों के सुख में ही सच्चा स्वर्ग छिपा है।” |
बीरबल का जवाब सुनकर निरुत्तर हो गए अकबर। |
अकबर हिंदू धर्म की बातें सुनने में बड़ी रुचि रखते थे और बीरबल भी उन्हें अनेक धर्मकथाएं सुनाया करता था। |
एक दिन बीरबल ने उन्हें इंद्र और स्वर्ग की कथा सुनाई। स्वर्ग की कथा सुनकर अकबर बोले, “बीरबल! यह सब तो कोरी गप्प है। स्वर्ग जैसा कुछ भी नहीं है।” |
बीरबल बोला, “जहांपनाह। ऐसी बात नहीं है, वास्तव में स्वर्ग है।” |
“यदि सचमुच में स्वर्ग है तो तुम हम सबको इंद्र की सवारी के दर्शन कराओ।” अकबर बोले। |
“ठीक है, एक-न-एक दिन मैं आपको इंद्र की सवारी के दर्शन अवश्य कराऊंगा।” बीरबल ने कहा। |
अब तो अकबर बीरबल के पीछे पड़ गए। उन्हें जब भी याद आता, बीरबल को इंद्र की सवारी वाली बात याद दिलाते। |
एक बार अकबर ने नदी पर बांध का निर्माण कार्य प्रारंभ करवाया। उस काम की जिम्मेदारी बीरबल के ऊपर छोड़ दी। |
बीरबल ने बांध के पास ही एक दीवार बनवाकर उसमें छोटे-छोटे झरोखे बनवाए और उन पर सुंदर नक्काशी करवा दी। |
पूर्णिमा की रात को अकबर और दूसरे दरबारियों को लेकर बीरबल नदी पर आया और सभी को झरोखों में बैठाकर बोला, “अभी आप सबको यहां से इंद्र की सवारी आती हुई दिखाई देगी।” |
नदी का दृश्य बहुत ही लुभावना था। |
ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी। फलस्वरूप नदी के जल में लहरें उठ रही थीं। चारों ओर चांदनी छिटकी हुई थी। नदी के जल में चंद्रमा का प्रतिबिंब पड़ रहा था। उस समय वह स्थल स्वर्ग जैसा मनोरम प्रतीत हो रहा था। |
एकाएक बीरबल जोर-जोर से बोलने लगा, “जहांपनाह! वह देखो, इंद्र की सवारी आ रही है। ऐरावत हाथी पर बैठे इंद्र कितने अच्छे लग रहे हैं। अरे, इनके आभूषण तो देखो! चेहरे पर कितना नूर है। |
अकबर और दूसरे दरबारी आँखें फाड़-फाड़कर देखने लगे। लेकिन बीरबल जैसा बोल रहा था, वैसा कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था। |
बीरबल फिर बोला, “जहांपनाह! देखिए, अप्सराएं भी आ रही हैं। मेनका, रंभा, उर्वशी। अहा… ये सब कितनी सुंदर हैं। अरे, इनकी चाल कितनी मोहक है! लेकिन यह सब पुण्यवानों को ही दिखाई देगा… पापियों को नहीं। जिस व्यक्ति ने जीवन में चोरी की होगी, दूसरों का दिल दुखाया होगा, जो पीठ पीछे अपने मित्रों व साथियों की निंदा करते रहे हैं, जिनका धर्म भ्रष्ट हो चुका है, ऐसे लोग इस सवारी को नहीं देख पाएंगे। क्यों साथियो! आपको तो इंद्र की सवारी दिखाई दे रही है न?” |
भला कौन इनकार करता? |
स्वयं को सच्चा और सत्यवादी सिद्ध करने के लिए सभी अपना-अपना सिर हिलाने लगे। लेकिन वास्तव में किसी को कुछ नहीं दिखाई दे रहा था। |
अंत में बीरबल बोला, “अब इंद्र की सवारी वापस जा रही है।” |
इसके बाद सब दरबारी अपने-अपने घर चले गए। |
अकबर और बीरबल भी अपने-अपने घर लौट गए। |
रास्ते में अकबर ने बीरबल से पूछा, “बीरबल! क्या तुमने वास्तव में ही इंद्र की सवारी देखी थी?” |
बीरबल बोला, “मैं तो पापी हूं मुझे इंद्र की सवारी कहां दिखाई देती? मैं तो नदी के तट के प्राकृतिक सौंदर्य का रस ले रहा था। फिर आपने बांध का भी तो निर्माण करवाया है। गरीब सुखी हो जाएंगे और गरीबों के सुख में ही सच्चा स्वर्ग छिपा है।” |
बीरबल का जवाब सुनकर निरुत्तर हो गए अकबर। |