Krishna Baldev Vaid
कहते हैं जिसको प्यार
Ce qu’on appelle l’amour
पात्र | Personnages |
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अखिल सुजाता गीता सुमित धीरू |
Akhil Sujata Gita Sumit Dhiru |
पहला अंक | Scène 1 | ||
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कृष्ण बलदेव वैद | Traduction : Muriel Calvet et Jyoti Garin | ||
[एक प्रोफ़ेसर के घर की बैठक, जिसमें बैठने के बजाय खड़े रहना ज़्यादा आसान लगता है। सुजाता खड़ी बन्द दरवाज़े की तरफ़ देख रही है। अखिल उसी दरवाज़े को धीरे से धकेलकर किसी अनाड़ी चोर की तरह अन्दर आता है तो सुजाता खिल उठती है।] | [Un salon chez un professeur où il est plus facile de rester debout que de s’asseoir. Debout, Sujata regarde vers la porte fermée. Doucement Akhil pousse cette porte et entre comme un voleur, et aussitôt, Sujata rayonne de joie.] | ||
सुजाता | आज आप कुछ जल्दी आ गए। | Sujata | Tu es venu bien tôt aujourd’hui ! |
अखिल | गीता ने जल्दी आने को कहा था। | Akhil | Gita m’a demandé de venir tôt. |
सुजाता | क्यों? | Sujata | Pourquoi ? |
अखिल | क्या पता! | Akhil | Qu’est-ce que j’en sais ! |
सुजाता | शादी के लिये दबाव डालना चाहती होगी। | Sujata | Elle doit vouloir faire pression sur toi pour le mariage. |
अखिल | मुझे भी यही खतरा है। | Akhil | C’est bien ce que je crains. |
सुजाता | तब तो आपको देर से आना चाहिये था। | Sujata | Alors tu aurais dû venir tard. |
अखिल | तब तो मुझे आना ही नहीं चाहिये था। | Akhil | Alors je n’aurais pas dû venir du tout. |
सुजाता | फिर आए क्यों? | Sujata | Alors pourquoi es-tu venu ? |
अखिल | क्योंकि तुम्हारी दीदी का आदेश था। | Akhil | Parce que c’était l’ordre de ta sœur. |
सुजाता | अगर अभी यह हाल है तो शादी के बाद क्या होगा! | Sujata | Si c’est comme ça maintenant, qu’est-ce que ce sera après le mariage ! |
अखिल | यही सोच-सोचकर सहमता रहता हूँ। | Akhil | À chaque fois que j’y pense, ça me rend malade. |
सुजाता | मुझे आप पर दया आती है। | Sujata | Tu me fais pitié ! |
अखिल | और कुछ नहीं? | Akhil | Et rien d’autre ? |
सुजाता | और बहुत कुछ भी आता है लेकिन क्या फ़ायदा उस सबका जब आपने दीदी के सामने घुटने टेक ही दिये। | Sujata | Et beaucoup d’autres choses, mais à quoi bon tout cela puisque Monsieur est déjà à genoux devant ma sœur. |
अखिल | मुझे बुलाकर वह ग़ायब है। कहाँ गई? | Akhil | Elle m’a fait venir et puis elle a disparu. Où est-elle allée ? |
सुजाता | धीरू दा के साथ। | Sujata | Avec Dhiru. |
अखिल | धीरू दा क्या हर वक़्त यहीं जमे रहते हैं? | Akhil | Dhiru a pris racine ici ? |
सुजाता | उनसे आपको कोई ख़तरा नहीं होना चाहिये। | Sujata | Tu n’as rien à craindre de lui. |
अखिल | तो किससे होना चाहिये? | Akhil | Alors de qui ? |
सुजाता | अपने आप से। और सुमित से। | Sujata | De toi-même. Et de Sumit. |
अखिल | सुमित से? | Akhil | Sumit ? |
सुजाता | हाँ, सुमित से। | Sujata | Oui, Sumit. |
अखिल | तो क्या वह भी यहीं जमा रहता है? | Akhil | Alors, comme ça, lui aussi a pris racine ici ? |
सुजाता | जमा तो नहीं रहता लेकिन जब आता है दीदी झूम उठती हैं। | Sujata | Il n’a pas pris raine ici, mais quand il vient, ma sœur se met à rayonner de plaisir. |
अखिल | अक्सर आता है? | Akhil | Il vient souvent ? |
सुजाता | अक्सर तो ख़ैर आप ही आते हैं। इसीलिये तो मैंने कहा सबसे बड़ा खतरा आपको अपने आप से ही होना चाहिये। | Sujata | En fait, il n’y a que toi qui viens souvent. C’est pour ça que je dis que le plus grand danger pour toi, c’est bien toi-même. |
अखिल | वह तो है ही। और वह हर इनसान को होना चाहिये, क्योंकि अपना सबसे बड़ा दुश्मन वह खुद होता है। | Akhil | Ça, c’est bien vrai. Et c’est tout à fait vrai pour chaque être humain, parce que le plus grand de tous les ennemis pour chacun, c’est soi-même. |
सुजाता | औरों का मुझे पता नहीं, आप तो हैं। | Sujata | Pour les autres, je ne sais pas, mais pour toi, oui. |
अखिल | तुम्हारे मुँह से अपनी बुराई सुनकर मुझे बुरा क्यों नहीं लगता? | Akhil | Quand c’est de ta bouche que j’entends mes défauts, je ne le prends pas mal. Je me demande bien pourquoi. |
सुजाता | कभी आराम से सोचिये इस बात पर। | Sujata | Un jour, pense tranquillement à tout ça. |
अखिल | आराम से तो अब किसी भी बात पर सोच नहीं पाता। | Akhil | En ce moment, je n’arrive pas à penser tranquillement à quoi que ce soit. |
सुजाता | आपका ये लाचारी का पोज़ मुझे तो अच्छा ही लगता है, दीदी को बिल्कुल नहीं। | Sujata | Quand tu poses au malheureux, moi j’aime bien. Ma sœur, pas du tout. |
अखिल | गीता को तो शायद ही मेरी कोई बात या आदत या हरकत अच्छी लगती हो। | Akhil | Je me demande même s’il y a quelque chose en moi, dans ce que je suis ou dans ce que je fais, que Gita aime. |
सुजाता | अगर यह सच है तो वह आपसे शादी करने पर क्यों तुली हुई है? | Sujata | Si c’est vrai, pourquoi est-elle décidée à t’épouser ? |
अखिल | काश कि मुझे मालूम होता! | Akhil | Si seulement je le savais ! |
सुजाता | मुझे है। | Sujata | Moi, je le sais. |
अखिल | बताओ तो! | Akhil | Alors dis-le ! |
सुजाता | बता दूँ? | Sujata | Que je le dise ? |
अखिल | हाँ, हाँ। | Akhil | Oui, oui. |
सुजाता | क्योंकि उसे ख़तरा है कि आप मुझसे उलझ जाएंगे या मुझे उलझा लेंगे आपने साथ। | Sujata | Parce qu’elle a peur que tu me prennes dans tes filets ou que moi je te prenne dans mes filets. |
अखिल | यह ख़तरा तो मुझे भी है। | Akhil | Moi aussi, j’en ai peur. |
सुजाता | मुझे तो ख़ैर है ही। | Sujata | Ça, moi aussi. |
अखिल | मेरा ख़याल था तुम्हें कोई ख़तरा नहीं। | Akhil | Je pensais qu’il n’y avait aucun danger pour toi. |
सुजाता | दीदी आपको खोना नहीं चाहती। | Sujata | Ma sœur ne veut pas te perdre. |
अखिल | कभी-कभी तो मुझे लगता है जैसे वह मुझे खा जाना चहती हो। | Akhil | Parfois j’ai même l’impression qu’elle veut me manger tout cru. |
[वक़्फ़ा] | [Silence] | ||
सुजाता | तो आप कह क्यों नहीं देते साफ़-साफ़ कि आप अभी खा लिये जाने के लिये तैयार नहीं। | Sujata | Alors pourquoi tu ne dis pas clairement que tu n’es pas prêt à être mangé tout cru ? |
अखिल | ऐसी बातें तुम्हारी दीदी से नहीं कही जा सकतीं। | Akhil | Ces choses-là, on ne peut pas les dire à ta sœur. |
सुजाता | मैं जानती हूँ इसीलिये तो हैरान होती हूँ कि आप क्यों शादी कर रहे हैं उससे। | Sujata | Je sais, c’est bien pour ça que je suis surprise que tu l’épouses. |
अखिल | कहाँ कर रहा हूँ! अभी तो टाल ही रहा हूँ। | Akhil | Comment ça, je l’épouse ! Pour le moment, je repousse. |
सुजाता | साफ़ इनकार क्यों नहीं कर देते? | Sujata | Pourquoi tu ne refuses pas clairement ? |
अखिल | तुम क्यों चाहती हो कि साफ़ इनकार कर दूँ? | Akhil | Pourquoi veux-tu que je refuse clairement ? |
सुजाता |
क्योंकि मैं आपको चाहती हूँ। हैरान होने की ज़रूरत नहीं। |
Sujata |
Parce que tu me plais. Inutile d’être surpris. |
अखिल | मैं हैरान नहीं हुआ। | Akhil | Je ne suis pas surpris. |
सुजाता | डरने की ज़रूररत भी नहीं। मैं दीदी को नहीं बताऊँगी। | Sujata | Inutile d’avoir peur, non plus. Je ne le dirai pas à ma sœur. |
वह जानती है। ज़रूर जानती होगी लेकिन मानती नहीं मानेगी नहीं। | Mais oui, elle doit le savoir, mais elle ne l’accepte pas et elle ne l’acceptera pas. | ||
अखिल | क्यों नहीं? | Akhil | Pourquoi pas ? |
सुजाता | क्योंकि वह आपको खोना नहीं चाहती। आर उसके लिये वह यह ज़रूरी समझती है कि मुझे लेकर वह आपसे सीधी या साफ़ बात न करे। | Sujata | Parce qu’elle ne veut pas te perdre, et pour ça, elle juge nécessaire de ne pas parler ouvertement de moi avec toi. |
अखिल | लेकिन वह मुझे खोना क्यों नहीं चाहती? | Akhil | Mais pourquoi est-ce qu’elle ne veut pas me perdre ? |
सुजाता | क्योंकि वह आपको खा जाना चाहती है। | Sujata | Parce qu’elle veut te manger tout cru. |
अखिल | लेकिन मुझे क्यों? और किसीको क्यों नहीं? धीरू को क्यों नहीं? सुमित को क्यों नहीं? | Akhil | Mais pourquoi moi ? Pourquoi pas quelqu’un d’autre ? Pourquoi pas Dhiru ? Pourquoi pas Sumit ? |
सुजाता | धीरू दा को वह खो चुकी है। आप जानते तो हैं कि धीरू दा अपनी बीवी बिमला पर जान देते हैं। | Sujata | Dhiru, elle l’a déjà perdu. Tu sais bien que Dhiru donnerait sa vie pour sa femme, Bimala. |
अखिल | मुझे धीरू दा के बारे में ज़्यादा मालूम नहीं। | Akhil | Je ne sais pas grand-chose sur Dhiru. |
सुजाता | कह दिया न कि धीरू दा से अब आपको कोई ख़तरा नहीं होना चाहिये - मतलब कोई उम्मिद नहीं होनी चाहिये। | Sujata | Dhiru, elle l’a déjà perdu. Tu sais bien que Dhiru donnerait sa vie pour sa femme, Bimala. |
[दोनों हँसते हैं।] | [Les deux rient.] |
pātra | Personnages |
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Akhila Sujātā Gītā Sumita Dhīrū |
Akhil Soudjata Guita Soumit Dhirou |
pahalā aṁka | Scène 1 | ||
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Krishna Baldev Vaid | Traduction : Muriel Calvet et Jyoti Garin | ||
[eka profesara ke ghara kī baiṭhaka jisameṁ baiṭhane ke bajāya khaṛe rahanā zyādā āsāna lagatā hai। ṣujātā khaṛī banda daravāze kī rarafa dekha rahī hai। usī daravāze ko dhīre se dhakelakara kisī anāṛī cora kī taraha andara ātā hai to khila uṭhatī hai।] | [Un salon chez un professeur où il est plus facile de rester debout que de s’asseoir. Debout, Soudjata regarde vers la porte fermée. Doucement Akhil pousse cette porte et entre comme un voleur, et aussitôt, Soudjata rayonne de joie.] | ||
Sujātā | āja āpa kucha jaldī ā gae। | Soudjata | Tu es venu bien tôt aujourd’hui ! |
Akhila | gītā ne jaldī āne ko kahā thā। | Akhil | Guita m’a demandé de venir tôt. |
Sujātā | kyoṁ ? | Soudjata | Pourquoi ? |
Akhila | kyā patā ! | Akhil | Qu’est-ce que j’en sais ! |
Sujātā | śādī ke liye dabāva ḍālanā cāhatī hogī। | Soudjata | Elle doit vouloir faire pression sur toi pour le mariage. |
Akhila | mujhe bhī yahī khatarā hai। | Akhil | C’est bien ce que je crains. |
Sujātā | taba to āpako dera se ānā cāhiye thā। | Soudjata | Alors tu aurais dû venir tard. |
Akhila | taba to mujhe ānā hī nahīṁ cāhiye thā। | Akhil | Alors je n’aurais pas dû venir du tout. |
Sujātā | phira āe kyoṁ ? | Soudjata | Alors pourquoi es-tu venu ? |
Akhila | kyoṁki tumhārī dīdī kā ādeśa thā। | Akhil | Parce que c’était l’ordre de ta sœur. |
Sujātā | agara abhī yaha hāla hai to śādī ke bāda kyā hogā ! | Soudjata | Si c’est comme ça maintenant, qu’est-ce que ce sera après le mariage ! |
Akhila | yahī soca-socakara sahamatā rahatā hūṁ। | Akhil | À chaque fois que j’y pense, ça me rend malade. |
Sujātā | mujhe āpa para dayā ātī hai। | Soudjata | Tu me fais pitié ! |
Akhila | aura kucha nahīṁ ? | Akhil | Et rien d’autre ? |
Sujātā | aura bahuta kucha bhī ātā hai lekina kyā fāyadā usa sabakā jaba āpane dīdī ke sāmane ghuṭane ṭeka hī diye। | Soudjata | Et beaucoup d’autres choses, mais à quoi bon tout cela puisque Monsieur est déjà à genoux devant ma sœur. |
Akhila | mujhe bulākara vaha ġāyaba hai। kahāṁ gaī ? | Akhil | Elle m’a fait venir et puis elle a disparu. Où est-elle allée ? |
Sujātā | dhīrū dā ke sātha। | Soudjata | Avec Dhirou. |
Akhila | dhīrū dā kyā hara vaqta yahīṁ jame rahate haiṁ ? | Akhil | Dhirou a pris racine ici ? |
Sujātā | unase āpako koī khatarā nahīṁ honā cāhiye। | Soudjata | Tu n’as rien à craindre de lui. |
Akhila | to kisase honā cāhiye ? | Akhil | Alors de qui ? |
Sujātā | apane āpa se। aura sumita se। | Soudjata | De toi-même. Et de Soumit. |
Akhila | sumita se ? | Akhil | Soumit ? |
Sujātā | hāṁ, sumita se। | Soudjata | Oui, Soumit. |
Akhila | to kyā vaha bhī yahīṁ jamā rahatā hai ? | Akhil | Alors, comme ça, lui aussi a pris racine ici ? |
Sujātā | jamā to nahīṁ rahatā lekina jaba ātā hai dīdī jhūma uṭhatī haiṁ। | Soudjata | Il n’a pas pris raine ici, mais quand il vient, ma sœur se met à rayonner de plaisir. |
Akhila | aksara ātā hai ? | Akhil | Il vient souvent ? |
Sujātā | aksara to khaira āpa hī āte haiṁ। isīliye to maiṁne kahā sabase baṛā khatarāa āpako apane āpa se hī honā cāhiye। | Soudjata | En fait, il n’y a que toi qui viens souvent. C’est pour ça que je dis que le plus grand danger pour toi, c’est bien toi-même. |
Akhila | vaha to hai hī। aura vaha hara inasāna ko honā cāhiye, kyoṁki apanā sabase baṛā duśmana vaha khuda hotā hai। | Akhil | Ça, c’est bien vrai. Et c’est tout à fait vrai pour chaque être humain, parce que le plus grand de tous les ennemis pour chacun, c’est soi-même. |
Sujātā | auroṁ kā mujhe patā nahīṁ, āpa to haiṁ। | Soudjata | Pour les autres, je ne sais pas, mais pour toi, oui. |
Akhila | tumhāre muṁha se apanī burāī sunakara mujhe burā kyoṁ nahīṁ lagatā ? | Akhil | Quand c’est de ta bouche que j’entends mes défauts, je ne le prends pas mal. Je me demande bien pourquoi. |
Sujātā | kabhī ārāma se sociye isa bāta para। | Soudjata | Un jour, pense tranquillement à tout ça. |
Akhila | ārāma se to aba kisī bhī bāta para soca nahīṁ pātā। | Akhil | En ce moment, je n’arrive pas à penser tranquillement à quoi que ce soit. |
Sujātā | āpakā ye lācārī kā poza mujhe to acchā hī lagatā hai, dīdī ko bilkula nahīṁ। | Soudjata | Quand tu poses au malheureux, moi j’aime bien. Ma sœur, pas du tout. |
Akhila | gītā ko to śāyada hī merī koī bāta yā ādata yā harakata acchī lagatī ho। | Akhil | Je me demande même s’il y a quelque chose en moi, dans ce que je suis ou dans ce que je fais, que Guita aime. |
Sujātā | agara yaha saca hai to vaha āpase śādī karane para kyoṁ tulī huī hai ? | Soudjata | Si c’est vrai, pourquoi est-elle décidée à t’épouser ? |
Akhila | kāśa ki mujhe mālūma hotā ! | Akhil | Si seulement je le savais ! |
Sujātā | mujhe hai। | Soudjata | Moi, je le sais. |
Akhila | batāo to ! | Akhil | Alors dis-le ! |
Sujātā | batā dūṁ ? | Soudjata | Que je le dise ? |
Akhila | hāṁ hāṁ। | Akhil | Oui, oui. |
Sujātā | kyoṁki use khatarā hai ki āpa mujhase ulajha jāeṁge yā mujhe ulajhā leṁge āpane sātha। | Soudjata | Parce qu’elle a peur que tu me prennes dans tes filets ou que moi je te prenne dans mes filets. |
Akhila | yaha khatarā to mujhe bhī hai। | Akhil | Moi aussi, j’en ai peur. |
Sujātā | mujhe to khaira hai hī। | Soudjata | Ça, moi aussi. |
Akhila | merā khayāla thā tumheṁ koī khatarā nahīṁ। | Akhil | Je pensais qu’il n’y avait aucun danger pour toi. |
Sujātā | dīdī āpako khonā nahīṁ cāhatī। | Soudjata | Ma sœur ne veut pas te perdre. |
Akhila | kabhī-kabhī to mujhe lagatā hai jaise vaha mujhe khā jānā cahatī ho। | Akhil | Parfois j’ai même l’impression qu’elle veut me manger tout cru. |
[vaqfā] | [Silence] | ||
Sujātā | to āpa kaha kyoṁ nahīṁ dete sāfa-sāfa ki āpa abhī khā liye jāne ke liye taiyāra nahīṁ। | Soudjata | Alors pourquoi tu ne dis pas clairement que tu n’es pas prêt à être mangé tout cru ? |
Akhila | aisī bāteṁ tumhārī dīdī se nahīṁ kahī jā sakatīṁ। | Akhil | Ces choses-là, on ne peut pas les dire à ta sœur. |
Sujātā | maiṁ jānatī hūṁ isīliye to hairāna hotī hūṁ ki āpa kyoṁ śādī kara rahe haiṁ usase। | Soudjata | Je sais, c’est bien pour ça que je suis surprise que tu l’épouses. |
Akhila | kahāṁ kara rahā hūṁ ! abhī to ṭāla hī rahā hūṁ। | Akhil | Comment ça, je l’épouse ! Pour le moment, je repousse. |
Sujātā | sāfa inakāra kyoṁ nahīṁ kara dete ? | Soudjata | Pourquoi tu ne refuses pas clairement ? |
Akhila | tuma kyoṁ cāhatī ho ki sāfa inakāra kara dūṁ ? | Akhil | Pourquoi veux-tu que je refuse clairement ? |
Sujātā | kyoṁki maiṁ āpako cāhatī hūṁ। | Soudjata | Parce que tu me plais. |
[vaqfā] | [Silence] | ||
hairāna hone kī zarūrata nahīṁ। | Inutile d’être surpris. | ||
Akhila | maiṁ hairāna nahīṁ huā। | Akhil | Je ne suis pas surpris. |
Sujātā | ḍarane kī zarūrarata bhī nahīṁ। maiṁ dīdī ko nahīṁ batāūṁgī।Hairaana hone kii zaruurata nahīṁ। | Soudjata | Inutile d’avoir peur, non plus. Je ne le dirai pas à ma sœur. |
vaha jānatī hai। zarūra jānatī hogī lekina mānatī nahīṁ mānegī nahīṁ। | Mais oui, elle doit le savoir, mais elle ne l’accepte pas et elle ne l’acceptera pas. | ||
Akhila | kyoṁ nahīṁ ? | Akhil | Pourquoi pas ? |
Sujātā | kyoṁki vaha āpako khonā nahīṁ cāhatī। āura usake liye vaha yaha zarūrī samajhatī hai ki mujhe lekara vaha āpase sīdhī yā sāfa bāta na kare। | Soudjata | Parce qu’elle ne veut pas te perdre, et pour ça, elle juge nécessaire de ne pas parler ouvertement de moi avec toi. |
Akhila | lekina vaha mujhe khonā kyoṁ nahīṁ cāhatī ? | Akhil | Mais pourquoi est-ce qu’elle ne veut pas me perdre ? |
Sujātā | kyoṁki vaha āpako khā jānā cāhatī hai। | Soudjata | Parce qu’elle veut te manger tout cru. |
Akhila | lekina mujhe kyoṁ ? aura kisīko kyoṁ nahīṁ ? dhīrū ko kyoṁ nahīṁ ? sumita ko kyoṁ nahīṁ ? | Akhil | Mais pourquoi moi ? Pourquoi pas quelqu’un d’autre ? Pourquoi pas Dhirou ? Pourquoi pas Soumit ? |
Sujātā | dhīrū dā ko vaha kho cukī hai। āpa jānate to haiṁ ki dhīrū dā apanī bīvī bimalā para jāna dete haiṁ। | Soudjata | Dhirou, elle l’a déjà perdu. Tu sais bien que Dhirou donnerait sa vie pour sa femme, Bimala. |
Akhila | mujhe dhīrū dā ke bāre meṁ zyādā mālūma nahīṁ। | Akhil | Je ne sais pas grand-chose sur Dhirou. |
Sujātā | kaha diyā na ki dhīrū dā se aba āpako koī khatarā nahīṁ honā cāhiye - matalaba koī ummida nahīṁ honī cāhiye। | Soudjata | Dhirou, elle l’a déjà perdu. Tu sais bien que Dhirou donnerait sa vie pour sa femme, Bimala. |
[donoṁ haṁsate haiṁ।] | [Les deux rient.] |